आज की बिजी लाइफस्टाइल में महिलाओं में हार्मोन इम्बैलेंस की समस्या बहुत आम हो गई है, जिसकी वजह से कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम हो सकती हैं। अगर हम अपने आस-पास की महिलाओं से बात करें तो आसानी से जान सकते हैं कि 10 में से एक महिला इससे पीड़ित है। आज हम हार्मोनल इम्बैलेंस के बारे में विस्तार जानेंगे, साथ ही इसकी वजह और लक्षणों के बारे में भी बात करेंगे। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हेल्दी यानि स्वस्थ रहने के लिए शरीर में हार्मोन का संतुलित होना बेहद जरूरी होता है। हार्मोन में गड़बड़ी होने पर कई तरह की समस्याएं जन्म ले लेती हैं। कमजोरी से लेकर चिड़चिड़ेपन तक महिलाएं अक्सर छोटी-मोटी हेल्थ प्रॉब्लम्स को इग्नोर कर देती हैं, पर ध्यान दें ये हार्मोनल इम्बैलेंस की शुरुआत या उसके लक्षण हो सकते हैं। महिलाओं में हार्मोन का इंबैलेंस वैसे तो पीरियड्स के शुरुआती चरण या फिर मेनोपॉज और प्रेग्नेंसी के दौरान दिखता है, लेकिन आजकल की भागती- दौड़ती जिंदगी, जिसमें अपने लिए सुकून के कुछ पल निकालना बेहद मुश्किल है, हार्मोनल इम्बैलेंस की समस्या बेहद आम हो गई है। आपकी जानकारी के लिए बता देते हैं कि हार्मोन्स को दिनचर्या और खानपान में कुछ बदलाव करके बैलेंस किया जा सकता है। अगर हार्मोन्स इम्बैलेंस हो जाएं और ध्यान न दिया जाए तो धीरे-धीरे गंभीर समस्या भी हो सकती है। इसलिए बॉडी में होने वाले बदलावों पर ध्यान देना चाहिए, तो चलिए जानते हैं कि आखिर हार्मोनल इम्बैलेंस के प्रमुख कारण क्या हैं, उसकी वजह और साथ जानेंगे लक्षणों के बारे में- हार्मोन्स क्या होते हैं? शरीर में उपस्थित एंडोक्राइन सिस्टम से (जो ग्रंथियों का एक समूह होता है) हार्मोन का उत्पादन और स्त्राव होता है। हार्मोन एक तरह के रसायन होते हैं जो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर एक मेसेंजर यानी संदेशवाहक के रूप में काम करते हैं। जब हार्मोन्स की मात्रा घटती या बढ़ जाती है तो इसे हार्मोनल इम्बैलेंस कहते हैं। जिसका असर शरीर पर कई समस्याओं के रूप में दिखाई देने लगता है। हार्मोनल इम्बैलेंस के लक्षण अगर हार्मोनल इम्बैलेंस के लक्षणों की बात करें तो पीरिड्स साइकिल का अनियमित होना, अचानक वजन बढ़ना या फिर घट जाना, पीठ की निचले हिस्से में भयंकर दर्द रहना, स्किन प्रॉब्लम्स, हेयर फॉल, कमजोरी, हमेशा थका-थका महसूस होना, कब्ज की समस्या बनी रहना, नींद में कमी आदि. फूड हैबिट्स हार्मोनल इम्बैलेंस में फूड हैबिट्स का बहुत बड़ा योगदान होता है। हार्मोनल इम्बैलेंस के लिए शुगर वाली चीजें ज्यादा खाना, रिफाइंड आटा यानि मैदा से बनी चीजें खाना, रिफाइंड ऑयल का ज्यादा इस्तेमाल करना, प्रोसेस्ड फूड्स, शराब पीना, स्मोकिंग आदि जिम्मेदार हो सकते हैं। स्टेरॉयड का प्रयोग किसी बीमारी से पीड़ित होने पर अगर आप स्टेरॉयड या अन्य दवाओं का लगातार सेवन कर रहे हैं तो ऐसी सिचुएशन में भी हार्मोन इम्बैलेंस होने की संभावना रहती है। अगर ऐसा होता है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। स्ट्रेस लेना महिलाओं में हार्मोनल इंबैलेंस की एक प्रमुख कारण स्ट्रेस भी हो सकता है। हार्मोन्स के बैलेंस को बनाए रखने के लिए स्ट्रेस से बचना बेहद जरूरी है, क्योंकि जब कोई ज्यादा तनाव लेता है तो शरीर में कार्टिसोल हार्मोन का उत्पादन ज्यादा होने लगता है, जिससे नींद न आना और थकान होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हार्मोनल इम्बैलेंस की वजह से बहुत सी बीमारियां हो सकती है, जैसे कि अनियमित पीरियड्स, डायबिटीज, थायराइड, कंसीव करने में समस्या आना। हार्मोनस को बैलेंस रखने के लिए टिप्स – – शरीर को हाइड्रेट रखें. – खानपान में प्रोटीन, कार्ब्स और विटामिन को शामिल करें – डाइट में कैफीन की मात्रा को सीमित रखें. – तनाव को कंट्रोल करने के लिए मेडिटेशन करें. नोट: यह लेख विभिन्न मेडिकल रिपोर्ट्स और विश्वसनीय स्वास्थ्य स्रोतों से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। इस लेख का उद्देश्य जानकारी प्रदान करना है और यह किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। कृपया अपने स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी समस्या के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श करें।
ब्रेस्ट कैंसर
ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता ही बचाव ब्रेस्ट कैंसर, जिसका नाम ही अपने आप महिलाओं में एक डर, एक सिरहन पैदा कर देता है। ब्रेस्ट कैंसर महिलाओँ में होने वाले कैंसर में सबसे आम है। भारत ही नहीं विदेश में भी महिलाओं में ये बहुत आम है। हर साल ये लाखों महिलाओं की मौत का कारण बनता है। ब्रेस्ट कैंसर एक गंभीर बीमारी है लेकिन इसका इलाज मुमकिन है। अगर समय रहते इसकी पहचान कर ली जाए तो आप इलाज के बाद कुछ सावधानियों के साथ आम जिंदगी बिता सकते हैं। ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षण स्किन या त्वचा में बदलाव – महिलाओं को अपने शरीर के हर अंग में आने वाले बदलावों के बारे में जागरुक रहना चाहिए। अगर आपको अपने ब्रेस्ट या स्तन के आसपास की त्वचा की बनावट में छोटे से छोटा भी बदलाव नज़र आता है तो उसे गलती से भी नजरअंदाज न करें। आपका त्वचा डिंपल नज़र आते हैं तो इसे अनदेखा ना करें, डिंपल का मतलब है कि आपके ब्रेस्ट पर मौजूद छोटे चैनल्स जिन्हें लिम्फ वेसल्स कहा जाता है,वह ब्लॉक हो गए हैं। इससे स्तन में सूजन आ जाती है और त्वचा के एक बड़े हिस्से में संतरे के छिलके जैसे छोटे-छोटे गड्ढे पड़ जाते हैं। स्किव या त्वचा पर दाने या लालिमा का होना – स्किन या त्वचा पर नजर आने वाले ब्रेस्ट कैंसर के एक अन्य संकेतों में निप्पल या आसपास के एरिया में एक्जिमा जैसे दाने या लालिमा होना शामिल है। निप्पल में अगर आपको किसी भी प्रकार का असामान्य बदलाव महसूस हो जैसे निप्पल से डिस्चार्ज हो रहा है, दर्द बना है तो ये भी ब्रेस्ट कैंसर का संकेत हो सकता है। इसलिए आपको अगर ऐसा कुछ भी अहसास हो तो डॉक्टर से संपर्क करने में देरी ना करें। ब्रेस्ट या स्तन में गांठ का होना – एक या एक से अधिक स्तन में गांठ का उत्पन्न होना ब्रेस्ट कैंसर का एक सामान्य लक्षण है। गांठ में कभी-कभी दर्द हो सकता है। अगर आपको भी स्तन में गांठ महसूस हो रही है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, ब्रेस्ट या स्तन कैंसर का खतरा किसी भी उम्र में हो सकता है, 20 साल से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को रेगुलरली ब्रेस्ट की जांच करते रहना चाहिए। इस प्रक्रिया को सीखने के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते या किसी प्रशिक्षित व्यक्ति की वीडियो देख कर ये सीख सकते हैं। आज के आधुनिक समय में ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग के लिए कई तरह की तकनीक उपलब्ध हैं, आप डॉक्टर के परामर्श से इनमें से आपके लिए जो टेस्ट सही हो वो करवा सकते हैं- 1) मैमोग्राम (Mammogram) – मैमोग्राम में ब्रेस्ट का एक्सरे किया जाता है। डॉक्टर इस टेस्ट के जरिए ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं ब्रेस्ट में किसी तरह का कैंसर तो नहीं पनप रहा है। आप डॉक्टर की सलाह पर समय- समय पर ये टेस्ट करवा सकती हैं। 2) 3डी टोमोसिंथेसिस (3D Tomosynthesis)- डिजिटल टोमोसिंथेसिस (मैमोग्राफी) ब्रेस्ट टिशू की 3डी तस्वीर तैयार करता है। जब ब्रेस्ट कैंसर के कोई भी लक्षण नहीं दिखते तब डॉक्टर इस तकनीक का इस्तेमाल करके कैंसर का पता लगा सकते हैं। ये तरीका उस समय काम करता है, जब किसी महिला के ब्रेस्ट टिशू बहुत घने होते हैं और इन्हें आम मेमोग्राम से टेस्ट नहीं किया जा सकता है। ये तकनीक उस खतरे को खत्म कर देती है यदि मेमोग्राम में टेक्निकल खराबी की वजह से किसी ग्रंथी के टिशू में छोटा सा ही सही कैंसर सेल हो और वो दिखा न हो। 3) ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड (Breast ultrasound) – ये तकनीक आपको आपके ब्रेस्ट की तस्वीर साउंड फ्रीक्वेंसी (ध्वनि आवृत्तियों) के जरिए देती है। इस तरह का परीक्षण एक पूरक परीक्षण के तौर पर किया जाता है जो मेमोग्राम के साथ कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है। 4) ब्रेस्ट एमआरआई (Breast MRI)- एमआरआई मतलब मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग जो बहुत ही ताकतवर मैग्नेटिक वेव्स (चुंबकीय तरंगों) का इस्तेमाल कर ब्रेस्ट की तस्वीर डिटेल में देती है। इसकी सलाह तब दी जाती है जब किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क काफी ज्यादा होता है। 6. क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (Clinical Breast Examination)- इस तकनीक में किसी स्पेशलिस्ट ब्रेस्ट सर्जन, जनरल सर्जन, गाइनेकोलॉडिस्ट, फेमिली फिजीशियन द्वारा खुद की जांच करवाना होता है। ताकि वो किसी भी असमानता को देख सकें। 40 साल से कम उम्र की महिलाओं को ये हर तीन साल में करवाना चाहिए और 40 के बाद हर साल। नोट: यह लेख विभिन्न मेडिकल रिपोर्ट्स और विश्वसनीय स्वास्थ्य स्रोतों से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। इस लेख का उद्देश्य जानकारी प्रदान करना है और यह किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। कृपया अपने स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी समस्या के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श करें।